
हरियाणा पुलिस महकमे में उस वक्त सनसनी फैल गई जब वरिष्ठ IPS अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले में राज्य के DGP शत्रुजीत कपूर सहित 12 उच्च अधिकारियों को चंडीगढ़ पुलिस ने FIR में नामजद किया।
मामला गुरुवार रात दर्ज किया गया और अब जिन अधिकारियों के नाम सामने आए हैं, उनमें कई बड़े रैंक के अफसर शामिल हैं।
इन अधिकारियों के खिलाफ दर्ज हुआ केस
FIR में जिनका नाम शामिल है, उनमें ये प्रमुख नाम हैं:
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DGP शत्रुजीत कपूर
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ADGP संदीप खिरवार
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ADGP अमिताभ ढिल्लों
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ADGP लॉ एंड ऑर्डर संजय कुमार
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ADGP माटा रवि किरण
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पंचकूला पुलिस कमिश्नर सिवास कविराज
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अंबाला रेंज IG पंकज नैन
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रोहतक SP नरेंद्र बिजरानिया
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पूर्व DGP मनोज यादव, PK अग्रवाल
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पूर्व मुख्य सचिव TVSN प्रसाद
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पूर्व ACS राजीव अरोड़ा
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IPS कल रामचंद्रन
इन सभी पर कथित रूप से जातीय उत्पीड़न, मानसिक दबाव और कार्यस्थल पर प्रताड़ना का आरोप है।
तीन सुसाइड नोट, गंभीर आरोप
जांच में सामने आया है कि पूरन कुमार ने आत्महत्या से पहले तीन सुसाइड नोट छोड़े थे, जिनमें उन्होंने जातिगत आधार पर प्रताड़ना का जिक्र किया है। यह नोट उनके घर से तब मिले जब उनकी पत्नी वहां पहुंचीं।
राजनीतिक भूचाल: केजरीवाल और प्रियंका गांधी का तीखा बयान
मामले ने राजनीतिक रूप भी ले लिया है। आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा:
“एक दलित IPS अफसर को इतनी प्रताड़ना झेलनी पड़ी कि उसने जान दे दी। दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।”
उन्होंने ये भी जोड़ा कि जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर हमला होता है, तो दलितों को ट्रोल किया जाता है, जो शर्मनाक है।
वहीं, प्रियंका गांधी ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी:
“हरियाणा में दलित IPS की आत्महत्या, रायबरेली में हरिओम वाल्मीकि की हत्या, सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस पर अपमान… यह भाजपा के शासन में दलितों की हालत को दर्शाता है।”
जातीय उत्पीड़न का सिस्टमिक सवाल
पूरन कुमार के सुसाइड केस ने भारत की ब्यूरोक्रेसी और पुलिस सिस्टम में मौजूद जातीय भेदभाव पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब ऊँचे ओहदे पर बैठा एक दलित अधिकारी सुरक्षित नहीं है, तो आम लोगों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सिर्फ जांच नहीं, इंसाफ भी चाहिए
हरियाणा में ADGP पूरन कुमार की आत्महत्या कोई अकेली घटना नहीं, बल्कि व्यवस्था में गहराई तक फैले जातिगत भेदभाव की बानगी है। FIR दर्ज हो चुकी है, लेकिन क्या वास्तव में दोषियों को सजा मिलेगी या मामला एक और “फाइल” बनकर रह जाएगा?
राजनीति गरम है, सोशल मीडिया उबाल पर है — लेकिन पूरन कुमार जैसे अधिकारी की मौत हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि पद और वर्दी भी जाति के आगे बेबस क्यों हैं?
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